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दिल्ली में यमुना का प्रदूषण: करोड़ों खर्च के बावजूद क्यों नहीं हो रहा सुधार?

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**नई दिल्ली:** करोड़ों रुपये खर्च करने के बावजूद दिल्ली में यमुना का प्रदूषण क्यों बढ़ रहा है? इस विषय पर सीएसई (सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट) की सीनियर प्रोग्राम मैनेजर, सुष्मिता सेनगुप्ता ने AAD (अनिल अग्रवाल डायलॉग) में एक प्रस्तुति दी।

उन्होंने बताया कि दिल्ली से निकलने वाले गंदे पानी की मात्रा का अनुमान केवल आकलनों पर आधारित है, जिससे यह समझना मुश्किल है कि यमुना को कैसे साफ किया जा सकता है। उनके अनुसार, पानी की सप्लाई का 80 प्रतिशत हिस्सा वेस्ट वॉटर माना जाता है। जबकि पानी की आपूर्ति जनसंख्या के आधार पर की जाती है, लेकिन वास्तविक जनसंख्या का सही आंकड़ा उपलब्ध नहीं है। यमुना दिल्ली के 22 किलोमीटर हिस्से से गुजरती है, जो कि इसकी कुल लंबाई का केवल दो प्रतिशत है और यह यमुना का सबसे अधिक प्रदूषित क्षेत्र है।

लोकसभा में एक प्रश्न के उत्तर में बताया गया कि 2017-2021 के बीच दिल्ली में यमुना की सफाई पर 6500 करोड़ रुपये खर्च किए गए। 2024 में दिल्ली में 3600 एमएलडी सीवेज उत्पन्न हो रहा है, जबकि सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट की क्षमता केवल 3033 एमएलडी है। मौजूदा एसटीपी केवल 2574 एमएलडी सीवेज का उपचार कर पा रहा है, और यमुना में छोड़े जाने से पहले 71 प्रतिशत वेस्ट वॉटर का उपचार किया जा रहा है। मार्च 2025 तक इसकी क्षमता को 550 एमएलडी बढ़ाने का लक्ष्य रखा गया है। सुष्मिता ने बताया कि केवल 14 एसटीपी ही डीपीसीसी और सीपीसीबी के मानकों पर पानी का उपचार कर पा रहे हैं।

इंटरसेप्टर सीवर प्रोजेक्ट के तहत 108 नालों को यमुना में गिरने से रोकने का कार्य किया जाना है, जिसमें से 22 बड़े नालों में से 9 को रोका जा चुका है। हालांकि, दिल्ली गेट और सेन नर्सिंग होम के दो नाले अभी भी यमुना में गंदगी छोड़ रहे हैं।

**रिपोर्ट के अनुसार:** हर दिन औसतन 1.5 मिलियन लीटर सेप्टेज का संग्रह और उपचार किया जाता है। सुष्मिता ने बताया कि 2021-22 के आर्थिक सर्वेक्षण के अनुसार, दिल्ली की 30 प्रतिशत आबादी अनधिकृत कॉलोनियों में रहती है, जहां के टॉयलेट्स सीवर सिस्टम से जुड़े नहीं हैं। इन्हें टैंकर द्वारा खाली किया जाता है, और लोग पैसे बचाने के लिए इन्हें खुले नालों में डाल देते हैं, जो सीधे यमुना में गिरते हैं।

**यमुना को साफ करने के उपाय:**
1. ट्रीटेड पानी को नालों में बहाने के बजाय पुन: उपयोग और रिसाइकिल किया जाए।
2. सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट को नदी के करीब स्थापित किया जाए ताकि उपचारित पानी सीधे नदी में छोड़ा जा सके।
3. वर्तमान में केवल 331 एमएलडी ट्रीटेड वॉटर का उपयोग किया जा रहा है, इसे बढ़ाना चाहिए।
4. इसका उपयोग कृषि, बागवानी, उद्योग और झीलों को पुनर्जीवित करने के लिए किया जाना चाहिए।

**लेखक के बारे में:**
अशोक उपाध्याय, एक डिजिटल कंटेंट प्रोड्यूसर हैं, जिन्होंने 2013 में जागरण इंस्टीट्यूट ऑफ मीडिया एंड मैनेजमेंट, नोएडा से स्नातक किया। उनके पास पत्रकारिता में 10 वर्षों का अनुभव है और उन्होंने कई विषयों पर काम किया है, जिसमें राजनीति और अपराध शामिल हैं। 2020 में उन्होंने डिजिटल मीडिया में कदम रखा और इस क्षेत्र में खुद को अपडेट रखने का प्रयास जारी रखा है।

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बदरपुर में विशाल अजगर का रेस्क्यू: टीम की मेहनत से बचाई गई जान, वीडियो हुआ वायरल

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दिल्ली के बदरपुर क्षेत्र में एक विशाल अजगर (python) नजर आया, जिससे इलाके में अफरा-तफरी मच गई। जैसे ही लोगों को इसकी जानकारी मिली, बड़ी संख्या में लोग अजगर को देखने के लिए इकट्ठा हो गए। कुछ युवकों ने अजगर को पत्थर मारकर परेशान करने की कोशिश की। इस दौरान, किसी ने वन्यजीव रेस्क्यू टीम को सूचना दी। टीम तुरंत मौके पर पहुंची और अजगर को सुरक्षित तरीके से पकड़ा।

अजगर को पकड़ने का प्रयास करते समय कई लोग वहां मौजूद थे। उसका आकार इतना बड़ा था कि उसे नियंत्रित करना चुनौतीपूर्ण था, लेकिन अंततः सामूहिक प्रयासों से उसे सफलतापूर्वक पकड़ लिया गया। इसके बाद, अजगर को सूरजकुंड के जंगलों में छोड़ा गया, ताकि वह अपने प्राकृतिक आवास में सुरक्षित रह सके।

रेस्क्यू के बाद, लोगों ने राहत की सांस ली, क्योंकि अजगर को देखने के लिए जुटी भीड़ के कारण रेस्क्यू ऑपरेशन में कठिनाई का सामना करना पड़ा। वन्यजीव विभाग ने लोगों से अपील की है कि वे किसी भी वन्यजीव को नुकसान न पहुंचाएं और ऐसी स्थितियों में तुरंत अधिकारियों को सूचित करें। शहरी क्षेत्रों में वन्यजीवों के आने पर उचित कदम उठाना जरूरी है, क्योंकि उनका शिकार करना न केवल अनैतिक है, बल्कि कानूनी रूप से भी दंडनीय हो सकता है।

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दिल्ली विधानसभा सत्र: मोहल्ला क्लीनिक में गड़बड़ी की जांच, रेखा सरकार आज पेश करेगी CAG रिपोर्ट

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10 साल में केवल आधे मरीजों का इलाज, एक मिनट में नहीं सुना जाता उनकी परेशानी; CAG रिपोर्ट में मोहल्ला क्लीनिक की कई कमियां उजागर

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नई दिल्ली: दिल्ली के मोहल्ला क्लीनिकों की स्थिति पर नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) की रिपोर्ट में गंभीर चिंता जताई गई है। रिपोर्ट के अनुसार, डॉक्टर मरीजों को देखने में एक मिनट से कम समय व्यतीत कर रहे हैं, जबकि कई क्लीनिकों में आवश्यक उपकरणों की कमी देखी गई है, और कुछ क्लीनिक महीनों तक बंद रहे। इसमें दवाओं की अनुपलब्धता, लैब सेवाओं का ठप होना, और आम आदमी पार्टी (AAP) सरकार द्वारा किए गए वादों के अनुसार कम क्लीनिकों के निर्माण जैसे मुद्दे भी शामिल हैं। रिपोर्ट में क्लीनिकों के निरीक्षण में लापरवाही का भी उल्लेख किया गया है।

CAG की रिपोर्ट ने दिल्ली सरकार के मोहल्ला क्लीनिकों की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाए हैं। इसमें बताया गया है कि अधिकांश मरीजों को डॉक्टरों द्वारा एक मिनट से भी कम समय दिया जा रहा है, और जरूरी उपकरण जैसे पल्स ऑक्सीमीटर, ग्लूकोमीटर, एक्स-रे व्यूअर, थर्मामीटर और ब्लड प्रेशर मॉनिटर कई क्लीनिकों में उपलब्ध नहीं हैं।

रिपोर्ट में यह भी पाया गया कि 18% क्लीनिक 15 दिनों से लेकर 23 महीनों तक बंद रहे हैं। इसके पीछे डॉक्टरों की कमी, इस्तीफे और डी-एम्पैनलमेंट जैसे कारण बताए गए हैं। चार जिलों के 218 क्लीनिकों में से 41 क्लीनिक बंद मिले। अक्टूबर 2022 से मार्च 2023 के बीच 70% मरीजों को एक मिनट से भी कम समय के लिए परामर्श दिया गया, जिससे स्वास्थ्य सेवाएं प्रभावित हुईं।

दवाओं की उपलब्धता पर भी चिंता जताई गई है। 74 क्लीनिकों में आवश्यक दवा सूची (EDL) में शामिल 165 दवाओं का पूरा स्टॉक नहीं पाया गया। दवाओं की आपूर्ति में बार-बार आने वाली दिक्कतों के कारण कई बार ऑर्डर पूरे नहीं हो पाए या आंशिक रूप से ही पूरे हुए। कई दवाएं या तो खरीदी ही नहीं गईं या ऑर्डर देने के बावजूद विक्रेताओं द्वारा डिलीवर नहीं की गईं। इसके परिणामस्वरूप, क्लीनिकों की समय पर देखभाल प्रदान करने की क्षमता प्रभावित हुई।

AAP सरकार के 10 साल के शासन में केवल 53% नियोजित मोहल्ला क्लीनिक ही बन पाए हैं। दूसरे कार्यकाल में सिर्फ 38 क्लीनिक जोड़े गए, जो उनके मेडिकल सर्विस के लक्ष्य से काफी पीछे हैं। 2015 में AAP सरकार ने 1000 क्लीनिक बनाने का वादा किया था, जो अब तक पूरा नहीं हुआ है। CAG रिपोर्ट में प्रोजेक्ट में देरी पर भी चिंता व्यक्त की गई है।

अधिकांश मोहल्ला क्लीनिकों में बुनियादी सुविधाओं की कमी का भी खुलासा हुआ है। 81 क्लीनिकों के मूल्यांकन में कई कमियां पाई गईं, जैसे कि 10 क्लीनिकों में पीने के पानी की अनुपलब्धता और 24 में दवाओं के भंडारण के लिए एयर कंडीशनिंग की कमी। इसके अलावा, कई क्लीनिकों में शौचालय की सुविधाएं भी नहीं थीं।

CAG ने बताया कि डीजीएचएस ने 26 फरवरी 2018 को एक आदेश जारी किया था, जिसमें सभी मोहल्ला क्लीनिकों का तिमाही दौरा अनिवार्य किया गया था। हालाँकि, ऑडिट से पता चला है कि मार्च 2018 और मार्च 2023 के बीच केवल 1.5% निरीक्षण ही पूरे किए गए।

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